
गोपेश्वर।
आदिगुरु शंकराचार्य की डोली मंगलवार को परम्परागत पूजा अर्चना के बाद समारोह के साथ बदरीनाथ धाम के लिए निकली। गुरुवार को पहुंचेगी बदरीनाथ।
शंकराचार्य की डोली के साथ पौराणिक गाडू-घड़ा कलश यात्रा भी साथ साथ बदरीनाथ के लिए निकली। मंगलवार को रात्रि प्रवास के लिए योग-ध्यान बदरी तीर्थ पाण्डुकेश्वर में प्रवास करेगी। यहां से बुधवार को भगवान बद्रीनाथ की उत्सव यात्रा धाम के लिए निकलेगी।
बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के विषय में मान्यता है कि भगवान बद्रीविशाल जी के महाभिषेक के लिए तिल का तेल प्रयोग करने की परम्परा है, इस तेल को टिहरी राजदरबार में सुहागिन महिलाओं द्वारा विशेष पोशाक पहन कर पिरोने के उपराऩ्त डिम्मर गाँव के डिमरी आचार्यों द्वारा लाए गए कलश में भर दिया जाता है जिसे गाड़ू घड़ा कहते हैं। इसी कलश को श्री बद्रीनाथ पहुँचाने की प्रक्रिया गाडू घड़ा कलश यात्रा कहलाती है।
आदि गुरु शंकराचार्य की डोली और गाडू घड़ा कलश यात्रा पाण्डुकेश्वर पहँचने के उपराऩ्त योग ध्यान बद्री में शीतकालीन प्रवास हेतु विराजमान भगवान उद्धव जी एवं भगवान कुबेर जी की डोली, शंकराचार्य जी एवं गाडू घड़ा कलश यात्रा के साथ बुधवार को श्री बद्रीनाथ जी के धाम के लिए निकलेंगे।

उल्लेखनीय है कि गुरुवार सुबह 27 अप्रैल को भगवान बद्रीविशाल के मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुल रहे हैं।