🖎 योगेश कुमार गोयल
एक ओर जहां विभिन्न राज्यों में डेंगू के प्रकोप के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर केरल में ‘निपाह’ वायरस के बढ़ते मामलों से लोगों के माथे पर चिंता की नई लकीर उभर रही है। कहा जा रहा है कि इस वायरस के संक्रमण की मृत्युदर बहुत ज्यादा है और इसी वजह से केरल के अलावा अन्य राज्यों को भी सावधान कर दिया गया है। अभी तक केरल में छह ‘निपाह’ मरीजों में से दो की मौत हो चुकी है और वहां की स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक फिलहाल संक्रमित व्यक्तियों की सम्पर्क सूची में 327 स्वास्थ्यकर्मियों सहित एक हजार से भी अधिक लोग हैं, जिनमें सैंकड़ों उच्च जोखिम वाली श्रेणी में हैं।
वर्ष 2020 और बाद के वर्षों में कोरोना महामारी ने देशभर में लाखों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था और ‘निपाह’ संक्रमण के बारे में ‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद’ (आईसीएमआर) का कहना है कि ‘कोविड’ में जहां मृत्युदर महज दो-तीन प्रतिशत थी, वहीं ‘निपाह’ में संक्रमित लोगों की मृत्यु दर 40-70 प्रतिशत है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भी ‘निपाह’ वायरस संक्रमण की मृत्यु दर 40 से 75 प्रतिशत के बीच ही अनुमानित है।
केरल में ‘निपाह’ वायरस की जांच के लिए कुछ लोगों के सैंपल पुणे के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी’ (एनआईवी) भेजे गए हैं जहां ‘सीरो सर्वे’ में पता चला है कि वायरस दूसरे राज्यों तक पहुंच रहा है। ‘एनआईवी’ के वैज्ञानिकों को ‘निपाह’ वायरस के दूसरे ‘सीरो सर्वे’ में केरल सहित गोवा, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, तमिलनाडु, कर्नाटक, पुडुचेरी इत्यादि के चमगादड़ों में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी मिली हैं। केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और पुडुचेरी में पहले भी एंटीबॉडी मिली थी। यही कारण है कि केरल सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार भी ‘निपाह’ के मामलों को लेकर सक्रिय हो गई है।
दरअसल 2018 में केरल में यह बीमारी जो कहर बरपा चुकी है, वह खौफनाक मंजर एक बार फिर लोगों की आंखों के सामने आने लगा है। उस समय 23 संक्रमितों में से 17 से ज्यादा की मौत हो गई थी, लेकिन उसके बावजूद ‘निपाह’ के उपचार के विकल्पों के मामलों में परिस्थितियां जस-की-तस हैं। आज भी इस बीमारी का कोई कारगर इलाज मौजूद नहीं है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि 2018, 2019 तथा 2021 में ‘निपाह’ के प्रकोप का सामना करने के बाद जो अनुभव मिले, उसके मद्देनजर प्रोटोकॉल (प्रबंधन, आइसोलेशन, रोकथाम और उपचार) का एक ‘टूलकिट’ तो अवश्य तैयार कर लिया गया, लेकिन कोरोना महामारी जैसे वैश्विक प्रकोप से जो बड़ा सबक सीखा जाना चाहिए था, वह शायद नहीं सीखा गया।
पहले जान लें कि ‘निपाह’ आखिर है क्या और यह इतना खतरनाक क्यों माना जाता है? ‘निपाह’ ऐसा वायरस है, जो चमगादड़, सुअर, कुत्तों, घोड़ों इत्यादि से फैलता है। ‘फ्रूटबैट्स’ अर्थात् फलाहारी चमगादड़ इस वायरस के वाहक होते हैं। यह बहुत तेजी से फैलने वाला खतरनाक संक्रमण है, जिसे तुरंत रोक पाना बहुत कठिन होता है।
ऐसा भी नहीं है कि भारत में इसका प्रकोप केरल में 2018 में पहली बार देखा गया हो, बल्कि 2001 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में ‘निपाह’ से 66 संक्रमित लोगों के मामले सामने आए थे, जिनमें से 45 की मौत हो गई थी। 2007 में भी पश्चिम बंगाल के नादिया क्षेत्र में पांच लोग संक्रमित हुए थे और सभी पांचों व्यक्तियों की मौत हो गई थी।
भारत में ‘निपाह’ संक्रमण से औसत मृत्यु दर 75 फीसदी से भी अधिक रही है। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के पास ‘निपाह’ संक्रमण को रोकने के लिए कोई खास पुख्ता इंतजाम अब तक नहीं हैं। प्रश्न यह है कि आखिर ऐसे क्या कारण हैं कि ‘निपाह’ देश के पूर्ण साक्षर राज्य केरल में बार-बार दस्तक देने में सफल हो रहा है?
पर्यावरणविदों का कहना है कि जून 2018 में केरल को ‘निपाह’ मुक्त घोषित करने के बाद इतने कम अंतराल में इस वायरस के बार-बार सिर उठाने के पीछे सबसे प्रमुख कारक शहरीकरण है। अंधाधुंध शहरीकरण के चलते मनुष्यों ने जंगलों को भी नहीं छोड़ा है और ‘निपाह’ के लिए जिम्मेदार चमगादड़ों के रहने के लिए अब जंगल सीमित रह गए हैं। निवास स्थान नष्ट होने से चमगादड़ तनावग्रस्त हो जाते हैं और भूखे रहते हैं, जिससे उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है और उनके भीतर वायरस का भार बढ़ जाता है, जो मूत्र और लार के जरिये बाहर आता है। इन्हीं के जरिये यह वायरस जानवरों तथा मनुष्यों में फैलता है।
यह वायरस मुख्य रूप से ‘टेरोपस जींस’ नामक नस्ल के चमगादड़ों (फ्रूटबैट) के संक्रमण द्वारा फैलता है और बाद में महामारी का रूप धारण कर लेता है। ये चमगादड़ जिस पेड़ पर रहते हैं, वहां मूत्र और लार के जरिये इस वायरस को फैला देते हैं और फिर जो भी मनुष्य या जानवर जाने-अनजाने में उस पेड़ के फल खाता है, वह ‘निपाह’ से संक्रमित हो जाता है।
‘निपाह’ वायरस की खोज करने वाले मलेशिया के प्रोफैसर चुआ का बिंग तथा प्रोफैसर स्टीफन तुंबी का कहना है कि यह वायरस दक्षिण एशिया में पाए जाने वाले एक बड़े आकार के चमगादड़ के कारण फैलता है, जिसे ‘इंडियन फ्रूटबैट’ यानी ‘फलभक्षी चमगादड़’ भी कहा जाता है। भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर केरल में तो यह चमगादड़ बहुतायत में हैं, जो श्रीलंका तक फैले हैं।
सबसे पहले ‘निपाह वायरस’ का पता 1998 में मलेशिया में सुअर पालने वाले किसानों के बीच फैली महामारी के दौरान चला था। तब ‘निपाह’ वायरस का पहला मामला मलेशिया के एक गांव कम्पुंग सुंगई निपाह में सामने आया था, जिसके बाद इसी गांव के नाम पर इस वायरस का नाम ‘निपाह’ रखा गया। उस समय इस बीमारी के वाहक सुअर बनते थे, लेकिन उसके बाद जहां-जहां भी ‘निपाह’ के मामले सामने आए, सुअरों के बजाय ‘फ्रूटबैट’ ‘निपाह’ के सबसे बड़े वाहक बनकर सामने आए।
पहली बार मलेशिया में इस बीमारी का पता चलने और सिंगापुर के भी इससे प्रभावित होने के दौरान पाया गया था कि ‘निपाह’ वारयस से संक्रमित अधिकांश व्यक्ति बीमार सुअरों या उनके दूषित ऊत्तकों के सीधे सम्पर्क में आए थे, लेकिन उसके बाद बांग्लादेश तथा भारत में ‘निपाह’ के कारण महामारी फैलने का सबसे संभावित स्रोत चमगादड़ों के मूत्र व लार से संक्रमित फल अथवा इन संक्रमित फलों से निर्मित उत्पाद या ताड़ी का सेवन रहा।
‘निपाह’ अन्य वायरस संक्रमणों के मुकाबले ज्यादा खतरनाक इसलिए माना जाता है क्योंकि इससे निपटने के लिए अब तक कोई वैक्सीन बनाने में सफलता नहीं मिली है, अर्थात् इसका कोई कारगर इलाज नहीं है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार ‘निपाह’ वायरस ‘इंसेफलाइटिस’ संक्रमण है, जो छूने मात्र से फैलता है और बड़ी तेजी से पूरे शरीर में फैलता है। इसकी चपेट में आने वाला व्यक्ति 24 से 48 घंटे के भीतर ही कोमा में जा सकता है और ऐसी स्थिति होने पर रोगी के बचने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है।
‘इंसेफलाइटिस’ यानी ‘दिमागी बुखार’ में सिरदर्द, तेज बुखार, सांस लेने में दिक्कत,सुस्ती,उलझन,याद्दाश्त कमजोर होना, चक्कर आना, भ्रम होना, मिर्गी आना और दौरे पड़ने जैसी शिकायत सामने आती हैं। ‘निपाह’ वायरस बच्चों को सबसे पहले और आसानी से अपनी गिरफ्त में लेता है। पशुजनित यह बीमारी चमगादड़ों या सुअरों के जरिये मनुष्यों में फैलती है और यह दूषित भोजन तथा मनुष्य से मनुष्य के सम्पर्क से भी फैल सकती है।
‘निपाह’ संक्रमण से बचने का एक उपाय स्वच्छता है। चिकित्सकों की सलाह है कि ‘निपाह’ वायरस से प्रभावित इलाकों में यदि किसी व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगे तो तुरंत जांच करानी चाहिए। दरअसल ‘निपाह’ से प्रभावित व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है और फिर दिमाग में जलन महसूस होती है तथा सही समय पर इलाज नहीं मिलने पर मौत हो जाती है। बचाव व रोकथाम ही ‘निपाह’ संक्रमण का एकमात्र उपचार है।
बहरहाल, ‘निपाह’ को महामारी में परिवर्तित होने से रोकने के लिए सबसे जरूरी है कि लोगों को ‘निपाह,’ इससे फैलने वाली बीमारी और बचाव के तरीकों के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जागरूक किया जाए। चूंकि अभी तक इस वायरस से बचने के लिए कोई वैक्सीन तैयार करने में सफलता नहीं मिली है, इसलिए ‘निपाह’ संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र उपाय लोगों को इससे बचाव के उपायों की समुचित जानकारी देना और जागरूकता का व्यापक प्रचार-प्रसार ही है। (सप्रेस)
❖ लेखक 33 वर्षों से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार और कुछ चर्चित पुस्तकों के रचनाकार हैं।