विनय सेमवाल
आज से एक शताब्दी पूर्व 12 जनवरी 1921को जब संपूर्ण उत्तराखंड भगवान भाष्कर के उत्तर गामी होने पर उतरैंण(मक्कर संक्रांति) का त्यौहार मना रहा था। तब बागेश्वर में बद्रिदत्त पाण्डे, हरगोविंद पंत और चिरंजी लाल के नेतृत्व में 10000 से अधिक लोगों के समूह ने सरयू के तट पर कुली बेगार प्रथा को खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। इस अमानवीय कुप्रथा को उखाड़ फेंकनें के दृढ़ संकल्प के साथ इसी दिन एकत्रित जनसमूह ने अंग्रेज पुलिस के सामने ही निडर होकर ‘भारत माता के जय घोष के साथ कुल्ली रजिस्टर सरयू नदी में प्रवाहित कर दिये थे।
इससे ठीक दो दिन पहले गढ़वाल में जब लोग दण्योंण(त्यौहार से पहले की तैयारी) की तैयारी कर रहे थे उससे एक दिन पहले 12 जनवरी को पौष की हाड़ कंपकपाने वाली ठंड की अल सुबह को गढ़केशरी श्री अनुसूया प्रसाद बहुगुणा जी कुली बेगार के खिलाफ, बागेश्वर में होने वाले आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने साथियों के साथ कर्णप्रयाग पहुँचे थे, जहां उन्हें सूचना मिलती हैं कि ब्रिटिश गढ़वाल के डिप्टी कमिश्नर पी मेसन उतरैंण को कर्णप्रयाग आने वाले है, और इस दौरान उनका ककोडाखाल में रात्रि विश्राम का कार्यक्रम है। उनकी इस यात्रा की तैयारी के लिए अंग्रेज सरकार के कर्मचारी और मुलाजिम इस क्षेत्र के गाँवो में बेगार व कुली की ब्यवस्था कर रहे हैं और लोगों को जबरन इसके लिए तैयार कर रहे थे।
खबर मिलते ही, गढकेशरीअनुसूया प्रसाद जी बिना देरी किए बागेश्वर का अपना कार्यक्रम रद्द कर देते हैं, अपने साथियों के साथ ककोडाखाल की ओर निकल पड़ते हैं। वहां पहुंच कर कुली बेगार प्रथा के विरोध में जनांदोलन खड़ा करते हैं। ककोड़ाखाल पहुंचने से पहले वे रास्ते में पड़ने वाले गौचर, सारी, छिनका, नाग सहित ककोडाखाल के आस-पास व दशज्यूला के गाँवों में भ्रमण कर वहाँ की जनता को कुली बेगार जैसी अमानवीय प्रथा के खिलाफ लामबंद करते हैं। इससे पूरे इलाके में प्रबल जनचेतना से एक जबरदस्त आंदोलन का सूत्रपात होता है।
दूसरी ओर अपने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रमनुसार 12 जनवरी 1921को पी मेसन जैसे ही अपने सरकारी अमले सहित ककोडाखाल पहुँचता है, ठीक उसी वक्त अनुसुया प्रसाद बहुगुणा जी के नेतृत्व में आंदोलनकारी भी ढोल दमाउं तथा नगाडो की थाप और आजादी के जयघोष करते हुए वहां प्रतिकार करते हैं। इससे मेसन को तीव्र जन-विरोध का सामना करना पड़ता हैं।
बहुगुणा के नेतृत्व में आंदोलनकारियों वहाँ पर बेगार द्वारा इकट्ठा किये गए समान को नष्ट करते हैं । ब्रितानी कर्मचारियों के लिए वहाँ लगे तम्बूओ को उखाड़ कर फेंकते हैं। डिप्टी कमिश्नर मेसन जो कि अपने पूरे परिवार सहित इलाके के भ्रमण पर थे, के साथ डिप्टी कलेक्टर चंद्रादत जोशी अपने पूरे अधीनस्थ कर्मचारियों सहित तीव्र जन विरोध को देखते हुए वहाँ से लौटना पड़ा। कुली बेगार के इस आंदोलन की याद में ककोड़ाखाल का स्मारक आज भी इस दिवस की याद दिलाता है। गांधी 150 के तहत हम लोगों ने उत्तराखंड में बद्रीनाथ से कौसानी होते हुए ककोड़ाखाल तक यात्रा निकाली थी। आज भी कंकोड़ाखाल में लोग इस ऐतिहासिक घटना को याद करते हैं।
ककोडाखाल खाल से भागने के बाद मेसन ने बदले की कार्यवाही के तहत दमनात्मक नीति अपनाते हुए दशज्यूला पट्टी के सभी 72 गाँवों को 10 नंबरी घोषित करते हुए काँडई के थोकदार हयाद सिंह नेगी की थोकदारी तथा सारी के मालगुजार आलम सिंह की मालगुजारी छीनने के साथ ही दो महीने की कैद तथा हयाद सिंह को तीन दिन की जेल व डंडो-कोडो की सजा दी गयी। कई आंदोलनकारियों को कैद तथा डंडो व कोडो की सजा भी दी गयी।
गाँधी जी ने भी यंग इंडिया में उतराखंड के कुली बेगार आंदोलन के विषय में लिखते हुए इसे “रक्तहीन क्रांति कहते हुए जनता की संगठनिक व सामूहिक क्षमता की शक्ति बताया”।
ककोड़़ाखाल आंदोलन के बाद अनसूयाप्रसाद गढ़केसरी के रूप में विख्यात हो गये. ककोड़ाखाल आंदोलन की सफलता पर स्वयं महात्मा गांधी ने अनसूयाप्रसाद बहुगुणा को बधाई संदेश भेजा था और इस आंदोलन को गढ़वाल में स्वाधीनता आंदोलन की प्रथम सफलता बताया था।