गोपेश्वर।
75 साल की श्रीमती भारती देवी जोशीमठ की उन दुर्भाग्यशाली महिलाओं में एक हैं जिनका घर भूं-धसाव से उजड़ गया है। पीढ़ियों की मेहनत से तैयार किए गए सीढ़ीनुमा खेत भी भूंधसाव के चलते दरारों से पट गए हैं। भारती देवी का परिवार सिंहधार के इस इलाके में सबसे पुराने वासिंदों में एक है। भारती देवी बताती है, जोशीमठ आस्तित्व में आने के साथ साथ ही उनके पूर्वज यहां बस गए थे।
भारती देवी के ध्वस्त घर से कुछ ही दूरी पर पानी के तीन प्राचीन धारे हैं, उनकी ओर संकेत करते हुए वह कहती हैं, जितने पूराने ये धारे हैं उतनी ही पुरानी हमारी बसावट हैं
उनका परिवार जोशीमठ के उन शुरूआती परिवारों में एक है जिनका सबकुछ जनवरी की शुरूआत में ही तबाह हो गया था। भारती देवी के इस गांव में उनके जैसे आधा दर्जन से अधिक परिवारों के घर,खेत ऐसे ही बर्बाद हुए हैं। भारती देवी बताती हैं, दो जनवरी की रात, घर के नीचे की जमीन खिसकनी शुरू हुई,तीन की सुबह होते होते घर में टिके रहना मुस्किल हो गया था। यह सबकुछ अचानक हुआ था,जो कुछ घर से समेट सकते थे, समेटा। घर के पास ही सरकारी प्राथमिक पाठशाला थी उसी में शरण ली। आसपास के सभी प्रभावित परिवार ने भी मेरी ही तरह ले जाने लायक सामान के साथ, इसी स्कूल में डेरा डाला दिया था। अब स्कूल खुल चुुकी है,हम यहां से भी बेदखल हो चुके हैं।
पहली फरवरी से भारती देवी और सिंहधार गांव के अन्य पीड़ित परिवार लगभग एक किलोमीटर आगे सेना के खाली पडे़ बैरकों में शरण लिए हुए हैं। शुक्रवार को भारती को अपने टूटे घर को छोड़े हुए पूरा एक महीना हो चुका है। भारती के लिए यह सब अभी भी सपने जैसा ही लगता है। वह कहती है, आधा दिन टूटे हुए घर के आसपास और आधा दिन तहसील में इस आशा से की सरकार की ओर से पुनर्वास को लेकर कोई सुखद खबर आ जाय इसी तरह कट जाता है। लेकिन रात कटते नही कटती। जैसे ही सेना के इन खाली पड़े बैरकों में सोने के लिए लौटते हैं तब ही बर्बादी की हकीकत का फिर से एहसास होने लगता है।
भारती देवी की ही उम्र के शिवलाल का घर भी भारती के घर से, महज दस मीटर की दूरी पर था। शिवलाल का घर भारती के घर जैसा तहस नहस तो नहीं है लेकिन आज भी इसमें रहना मौत को दावत देने जैसा है। शिवलाल के घर के नीचे खेत है और खेतों में दूर-दूर तक दरारे ही दरारे पड़ी है। मकान के नीचे बड़ा बौल्डर है जिस पर यह घर ठिका है। बौल्डर के नीचे दरारे है। जिससे आसन्न खतरा बना हुआ है। शिवलाल रात रहने के लिए ही सेना के इन बैरकों का उपयोग करते हैं,सुबह होते ही अपने क्षतिग्रस्त घर और खेतों के आसपास उन्हें चेहरा लटकाये देखा जा सकता है। शिवलाल की पत्नी विश्वेश्वरी देवी और वह पूरा दिन इसी घर के आसपास गुजारते हैं। पत्नी वहां रखी मवेशियों की देखभाल में लगी रहती हैं तो शिवलाल इस हादसे के बाद लगभग गुमसुम रहने लगे हैं। विश्वेश्वरी देवी की तीन गाये अभी भी यहीं हैं। निराश मन से विश्वेश्वरी देवी कहती है जीना भी इन्हीं मवेशियों के साथ है और मरना भी इन्हीं के साथ है। जब तक हमारी मवेशिया सुरक्षित नहीं है, तब तक हम कैसे सुरक्षित रह सकते हैं। घर के साथ सुरक्षित जगह पर मवेशियों के आश्रयस्थल मिलना चाहिए तभी हम यहां से जा सकते हैं। जिन खेतों में विश्वेश्वरी कभी अनाज उगाया करती थी वे अब अलकनन्दा नदी की तरफ धंस रहे हैं। पशुपालन और खेतीबाड़ी इनकी आजीविका का मुख्य आधार था। इस आपदा ने आसियाने के साथ ये दोनों आधार पर बर्बाद कर दिए है।
यहां रह रहे काफी सारे लोग वापस लौट आये हैं जिसका असर अलग-अलग तरह से यहां की स्थानीय आबादी और लोगों पर दिखना शुरू हो गया है। विश्वेश्वरी देवी दरारों की भेंट चढ़े अपने खेतों की ओर इशारा करते हुए सवाल उठाती है कि इनमें क्या फसल बोयेंगे?
भारती देवी और शिवलाल इस इलाके के बड़े-बुजूर्ग में एक हैं। परिवार की बेबसी और गांव की दुदर्शा का दर्द दोनो का एक जैसा है। शिवलाल की ओर इसारा करते हुए विश्वेश्वरी देवी कहती हैं हादसे के बाद इनकी दिनचर्या बदल गई है। खुशमिजाज व्यक्तिः वाले उसके पति अब गुमसुम ज्यादा है। पुछने पर भी बहुत कम बोलते हैं। इस टूटे हुए घर के आसपास ही मंडराते रहते हैं। कभी इसी चिंता में सीधे तहसील तक चले जाते हैं फिर लौटकर चुपचाप एक कोने में बैठ जाते हैं। शिवलाल के दो बेटे थे एक की कुछ समय पूर्व अचानक मौत हो गई थी। उसकी शादी भी थी और दो बच्चे भी हैं। हादसे के बाद इनके भविष्य को लेकर शिवलाल ज्यादा चिंतित है।
ढाई दशक पहले सेना से सेवानिवृत्त होकर जोशीमठ में बसे पुष्कर सिंह बिष्ट भी उन परिवारों में एक है जो पिछले एक महीने से राहत शिविरों में अपना जीवन बिता रहे हैं। पुष्कर सिंह जोशीमठ के संस्कृत विद्यालय के छात्रावास में बने अस्थायी राहत शिविर में अपने परिवार के सदस्यों के साथ एक कमरे में ठहरे हुए हैं। भविष्य की अनिश्चितता को लेकर मायुस पुष्कर सिंह ने दो दशक पहले सिंहधार वार्ड में मेहनत से अच्छा सा घर बनाया था। इस घर में सात परिवारों के रहने लायक सात सेट बने हुए थे। तीन जनवरी को इनका यह पूरा घर खतरनाक घोषित किया गया और पुष्कर सिंह का परिवार घर से बाहर हो गया। पुष्कर सिंह कहते हैं, एक महीने तो जैसे तैंसे कट गए हैं लेकिन आगे क्या होगा? यह सवाल मन ही मन कचोटे जा रहा है। परिवार के आठ सदस्यों के साथ इस राहत शिविर में रह रहे बिष्ट कहते है कि अब पोते-पोतियों की स्कूल खुल गई है,दिक्कते बढ़ गई है। वे कहते हैं इन छोटे-छोटे स्कूल जाने वाले बच्चों पर इसका नकारात्मक असर दिखने लगा है। स्कूल जाने के लिए इन बच्चों के लिए दिन की शुरूआत मैराथन जैसी ही है। जल्दी उठना,नित्यकर्म के लिए राहत शिविर के स्नानागार और वासरूम की क्यू में अपने नंबर की प्रतीक्षा तक रूके रहना। स्कूल में टिफिन जैसी समस्याओं एक तरफ है और दूसरी तरफ पांच कमरों में रहने वाला परिवार एक छोटे से कमरे मेें सिमट जाने का अव्यक्त दर्द है।यह उनके मनोभावों में देखा जा सकता है। पुष्कर सिंह की पुत्रबधु श्रीमती आरती बिष्ट कहती है,जीवन थम सा गया है।
संस्कृत महाविद्यालय में 26 से ज्यादा परिवारों को रखा गया है। यहां खाना-पीना और आवास की व्यवस्था है। लेकिन भविष्य की अनिश्चितता अधिकतर परिवारों में एक जैसी है। समीप ही करछों गांव से दो दशक से कुछ अधिक समय से जोशीमठ में रह रही देवेश्वरी देवी कहती है। आगे क्या होगा? न किसी को पता है और न कोई बता रहा है। यहां तक की अगले हप्ते से यह विद्यालय भी खुल रहा है। छात्र छुट्टी से वापस आयेंगे तो हमें यहां से भी उठना पड़ेगा। कब तक यह अदला-बदली चलेगी?
सिंहधार वार्ड की श्रीमती रजनी देवी का मकान भी तीन जनवरी से खतरे की जद में आ गया था। यह मकान आपदा से बचेगा या नहीं इसी आशा-निराशा के बीच रजनी देवी और उसका परिवार पिछले एक महीने से सूरज निकलते ही इस घर में चला आता है और साम ढलते ही इस घर से लगभग दस किलोमीटर दूर अपनी मां के गांव गणेशपुर लौट जाता है। यह इनकी दिनचर्या बन गई है।रजनी देवी कहती है, मकान तो खड़ा है लेकिन मकान के नीचे जो खेत है, उनमें दरारे चौडी होती जा रही है। बर्षात के बाद ही पता चलेगा कि उनका यह घर खड़ा रहता है या नहीं। रजनी देवी के बेटे ने हाल ही में मैकनिकल इंजिनियरिंग से ग्रैजुयेशन की है। वह कहता है कि सरकार को पहले से जोशीमठ के हालात के बारे में पता थे तो यहां नयी बसावट रोकी जानी चाहिए थी। लोगों को जानकारी दी जानी चाहिए थी। यदि ऐसा होता तो नुकसान भी कम होता और कष्ट भी कम।
बदरीनाथ के समीप माणा गांव की मूल निवासी रजनी देवी से जब इस संवाददाता ने घर से हर दिन दस किलोमीटर आने जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जिस तरह एक महीने के भीतर ही सरकार ने स्कूलों में खुले राहत शिविर बंद कर दिए हैं उसी तरह बदरीनाथ यात्रा शुरू होते ही होटलों से भी बाहर किया जा सकता है। इसी बात को ध्यान में रखकर हमने पहले ही दूर घर ले लिया। देवेश्वरी देवी भी रजनी की ही बात को लेकर आशंकित थी। जब हम लोग संस्कृत महाविद्यालय में पहुंचे तो हमें सरकारी कर्मचारी समझ कर उनका पहला सवाल था कि क्या हमें यहां से हटाने का फरमान लेकर आये हैं।
जोशीमठ के अधिकतर पीड़ित परिवारों की जुबान में यही सवाल है, एक महीन से उपर हो चुका है, और स्थायी पुनर्वास को लेकर कोई ठोस निर्णय अभी तक नहीं आ पाया है। अधिकतर पीड़ित जोशीमठ के आसपास ही रहने की मंशा जता रहे हैं। लेकिन अनिर्णय की स्थिति के चलते चिंतित भी हैं। पुष्कर सिंह कहते हेैं जो तेजी जनवरी के पहले हप्ते दिखी थी वैसी अब नहीं दिख रही है। मिडिया के जाते ही सरकारी अमला भी सुस्त पड़ता दिखायी दे रहा है। नरसिंहवार्ड के 52 साल के अनिल नंबूरी भी इसी बात को दोहराते हैं। अनिल नंबूरी का नरसिंह मंदिर के समीप तीन मंजिला पैतृक भवन है जो भूधसाव की जद में आने से क्षतिग्रस्त है। 15 जनवरी को इन्हें मकान से हटा कर समीप के ही एक होटल में रखा गया था। अनिल नंबूरी कहते हैं राहत के नाम पर डेड लाख की जिस धनराशि को देने का वायदा राज्य सरकार ने किया था वह उन्हें आज तक नहीं मिली। 25 जनवरी को सभी कागजात जमा किए जा चुके थे। दूसरा मकान नहीं है परिवार अनिश्चय की स्थिति में है। उनका कहना था कि जो कुछ भी किया जाय जल्दी किया जाय।