🖎 सुदर्शन सोलंकी
मानव द्वारा जंगलों को समाप्त कर वन व वन्य-जीवों को विनाश की ओर धकेला जा रहा है। ‘ग्लोबल असेसमेंट रिपोर्ट – 2019’ के अनुसार दस लाख जीवों की प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं। इस रिपोर्ट में चेतावनी भी दी गई है कि यदि हम अब भी गंभीर नहीं हुए तो इसके भयावह परिणाम देखने मिलेंगे। वहीं ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जरवेशन ऑफ नेचर’ (आईयूसीएन) द्वारा जारी ‘रैड डाटा लिस्ट’ के अनुसार 40 हजार जातियां संकटग्रस्त हैं और विलुप्ति की कगार पर हैं। कम्बोडिया में बाघ पूर्णतः विलुप्त हो चुके हैं।
‘अखिल भारतीय बाघ अनुमान रिपोर्ट – 2018’ के अनुसार, हमारे देश में बाघों की संख्या 2967 है, जो कि विश्व में सर्वाधिक है। पूरी दुनिया में केवल 3890 बाघ हैं। इस तरह भारत में विश्व के लगभग 74 प्रतिशत से अधिक बाघ हैं, जबकि आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व भारत के जंगलों में लगभग 40,000 बंगाल टाइगर यानि बाघ थे।
मध्यप्रदेश के ‘राष्ट्रीय उद्यानों’ में बाघों की संख्या-
बांधवगढ़ 124
कान्हा 104
पेंच 87
सतपुड़ा 47
पन्ना 31
संजय 06
‘वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में 116 और 2018 में 85 बाघों की मौत हुई हैं। वर्ष 2016 में 120 बाघों की मौतें हुईं थीं, जो साल 2006 के बाद सबसे ज्यादा थीं। हाल ही में आए आंकड़ों से पता चला है कि ‘टाइगर स्टेट’ मध्यप्रदेश में बाघों कि मौत चिंता का कारण बन रही है। वर्ष 2021-22 में प्रदेश में कुल 41 बाघों कि मौत हुई है जो पिछले छह वर्षों में सर्वाधिक है। इसके पूर्व 2016-17 में 34 बाघों की मौतें हुई थीं जो कि पूरे देश में सर्वाधिक हैं।
वर्ष 2012 से 2020 के बीच आठ वर्षों में मप्र ने कुल 202 बाघ गंवाए हैं जो देश में सबसे ज्यादा हैं। बाघों की इन मौतों में प्राकृतिक तरीके से मौतों के अलावा आपसी संघर्ष, शिकारियों के फंदे में फंसने व करंट के जाल में उलझने से होने वाली मौतें भी सम्मिलित हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि जंगलों के लगातार सिकुड़ने के कारण बाघों के रहवास की पर्याप्त व्यस्थाएं नहीं हो पा रही हैं। जंगलों में पर्यटन को बढ़ावा देना भी इनके लिए नुकसानदायक है। घटते क्षेत्रफल से बाघ जंगलों के बाहर आते हैं व मारे जाते हैं, जबकि जंगल के अंदर कम क्षेत्र होने से वे आपसी संघर्ष में जान गंवा बैठते हैं।
वर्ष 2018 की गणना के अनुसार भारत के राज्यों में बाघों की संख्या-
मध्यप्रदेश – 526
कर्नाटक – 524
उत्तराखंड – 442
महाराष्ट्र – 312
तमिलनाडु – 264
केरल – 190
असम – 190
उत्तरप्रदेश – 173
पश्चिम बंगाल – 88
राजस्थान – 69
आंध्रप्रदेश – 48
बिहार – 31
अरुणाचल – 29
ओडिसा – 28
तेलंगाना – 26
छत्तीसगढ़ – 19
बाघ-स्थलीय-पारिस्थितिक-तंत्र की खाद्य श्रंखला में सर्वोच्च मांसाहारी प्राणी होने की अहम जिम्मेदारी निभाते हैं। बाघ को बचाना यानि जल, जंगल, जमीन बचाना है। यदि बाघ न हों तो शाकाहारी जीवों की संख्या बढ़ जाएगी। परिणामस्वरुप वे जीव जो बाघों द्वारा छोडे गए शिकार का मांस खाने पर निर्भर हैं, भूखे रह जाते हैं। दूसरे, ये शाकाहारी जीव मानवों के लिए शाकाहारी भोजन का संकट उत्पन्न कर देते हैं।
बाघों के संरक्षण के लिए कई चुनौतियाँ हैं, जैसे – जंगल में दो बाघ कभी साथ नहीं रहते, सिवाय 8-10 दिन संबंधरत होने या फिर शावक के रूप में अपनी माँ के साथ दो साल तक रहने के। बाघ का शिकारी जीवन भी आसान नहीं होता। उसे कई बार कोशिश करने के बाद ही शिकार हासिल होता है। सिकुड़ते जंगल, वन्य-जीवों की कमी और मानव द्वारा शिकार करना, इनके संरक्षण में सबसे बड़ी चुनौती है। इसलिए जंगलों को मानवीय गतिविधियों व वन्य-जीवों के शिकार से पूरी तरह मुक्त रखना जरुरी है, तब ही बाघों की संख्या बढ़ेगी। (सप्रेस)
❖ श्री सुदर्शन सोलंकी विज्ञान संबंधी विषयों के लेखक एवं ब्लॉगर हैं।