चिपको की 50 वीं वर्षगांठ को धूम धाम से मनाने का लिया निर्णय

चिपको की 50 वीं वर्षगांठ को धूम धाम से मनाने का लिया निर्णय
25 दिसम्बर 1973 को रामपुर न्यालसू के शीला के जंगल में पेड़ बचाने के चिपको आंदोलन स्व श्री केदार सिंह रावत और अनुसूया प्रसाद भट्ट। फोटो: अनुपम मिश्र Chipko Movement - Kedar Singh Rawat and Anusuya Prasad Bhatt in Nyalsu village, 25 December 1973 Photo by: Anupam Mishra

It has been decided to celebrate the 50th anniversary of Chipko movement in Nyalsu Village near Rampur Phata, District Rudraprayag, Uttarakhand.

न्यालसु Nyalsu village में दिसंबर 1973 में चले चिपको आंदोलन के 50 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर चिपको की मातृ संस्था दशोली ग्राम स्वराज्य मण्डल तथा सी. पी. भट्ट एवं पर्यावरण एवं विकास केंद्र तथा ग्राम सभा न्यालसु के तत्वाधान में रामपुर में “चिपको आंदोलन के 50 साल पूरे होने के अवसर पर होने वाले आयोजित कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन हेतु ग्राम प्रधान न्यालसु प्रमोद सिंह की अध्यक्षता में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया।

इस दौरान आगामी कार्यक्रमो के सफल संचालन तथा क्षेत्र के पर्यावरण को सुरक्षित रखने हेतु प्रमोद सिंह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन कर शैलेंद्र सिंह गजवाँण को उपाध्यक्ष तथा अजय प्रताप सिंह को सचिव, राजेश चौहान को कोषाध्यक्ष तथा रोबिन सिंह को प्रचार प्रमुख, चुना गया।

गोष्ठी को संबोधित करते हुए चण्डी प्रसाद भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र के प्रबंध न्यासी श्री ओम प्रकाश भट्ट ने सर्वोदायी नेता केदार सिंह को श्रद्धांजलि ज्ञापित करते हुए उनके द्वारा क्षेत्र के लिए किये गए सामाजिक कार्यो के साथ ही रामपुर ,फाटा, मैखडा, तथा सेरसी के जंगलो को बचाने के लिए चले चिपको आंदोलन में उनकी भूमिका तथा नेतृत्व पर विस्तार से अपने विचार ब्यक्त करने के साथ ही बताया कि वन संवर्धन एवं सामाजिक कार्यो में उनके अविस्मरणीय योगदान को चिर स्थाई रखने के साथ ही भावी पीढी को अवगत कराने हेतु प्रति वर्ष उनके नाम से पर्यावरण के क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों को “केदार सिंह रावत” पर्यावरण पुरस्कार प्रदान किया जाता हैं।


पूर्व प्रधान श्री विक्रम सिंह रावत ने कहा कि यह संपूर्ण घाटी के लिए गौरव की बात है कि इस क्षेत्र में केदार सिंह रावत जैसे समाज एवं पर्यावरण के प्रति समर्पित पुरोधा जन्मे हैं जिनके पर्यावरणीय चिंतन को संपूर्ण विश्व ने सराहा। पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य खुशाल सिंह रावत ने कहा कि क्षेत्र में चले चिपको आंदोलन की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर होने वाले कार्यक्रमों से भावी पीढी व मातृ शक्ति पुनः नये कलेवर के साथ अपने जंगलो एवं पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होंगे।


इस दौरान गोष्ठी में केदार सिंह रावत के साथ आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारी दयानंद, प्रयाग दत्त, प्रताप सिंह, गजाधर सेमवाल, को भी याद करते हुए श्रद्धाजलि ज्ञापित की गयी।

ग्राम सभा में आयोजित गोष्ठी का संचालन विकास केंद्र के समन्वयक विनय सेमवाल ने किया । गोष्ठी में शांति प्रकाश रावत, रोबिन सिंह,प्रमोद सिंह रावत, शैलेंद्र सिंह गजवाण, डॉ अजय चौहान, त्रिलोक सिंह, गोपाल सिंह, अजय प्रताप, विपुल रावत, रणजीत सिंह, कीरत सिंह, विमल सिंह, संदीप गाजवाँण, सुंदर सिंह, अनूप सिंह, राजेश चौहान, खुशाल सिंह, मंगल सिंह नेगी सहित संपूर्ण ग्राम सभा तथा समीपवर्ती गाँवों के कई लोग मौजूद थे।

चिपको आंदोलन एक दृष्टि

बता दें कि 50 वर्ष पूर्व 27 मार्च 1973 को चण्डी प्रसाद भट्ट द्वारा सर्वोदय केंद्र, गोपेश्वर में वनों को बचाने के लिए रणनीतिक बैठक का आयोजन किया गया। बैठक में चण्डी प्रसाद भट्ट द्वारा पेड़ों को बचाने के लिए उन पर अंग्वालठा मारकर (चिपककर) बचाने का निर्णय लेने से चिपको का विचार अस्तित्व में आया

01 अप्रैल 1973 को मंडघाटी के जंगलों को बचाने के लिए दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल द्वारा सर्वोदय केंद्र में क्षेत्र के सभी दलों के प्रतिनिधियों तथा समाज सेवियों के साथ पहली रणनीतिक बैठक का आयोजन। बैठक मे पेड़ों को बचाने के लिए उन पर अंग्वाल्ठा मारने (चिपकने) का निर्णय पारित


24 अप्रैल 1973 को पेड़ों को कटने से बचाने के लिए मंडल घाटी के गोंडी चिपको आंदोलन की शुरुआत। भारी जन आक्रोश को देखकर कंपनी के मजदूर जंगल से वापस लौटे


20 जून 1973 को फाटा में मैखंडा के जंगलो को बचाने के लिए चंडी प्रसाद भट्ट तथा आनंद सिंह बिष्ट द्वारा केदार सिंह रावत के सहयोग से स्थानीय ग्रामीणों के साथ चिपको की बैठक। 26 जून की बैठक में शंखध्वनि से वन की चौकीदारी का निर्णय।


25 दिसंबर 1973 को फाटा में चिपको आंदोलन।


जनवरी 1974 रेणी के जंगल को बचाने के लिए चिपको आंदोलन की ब्यापक तैयारी हेतु जनवरी 1974 में चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा देहरादून सर्किट हाउस में चल रही वनों की निवासी रोकने के लिए शांतिमय सत्याग्रह


जनवरी 1974 फिर इसी माह चण्डी प्रसाद भट्ट, गोविंद सिंह रावत, वासवानंद नौटियाल, तथा हयाद सिंह समेत स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ रैणी और आसपास के गांवों का भ्रमण और गाँवों में चिपको की गोष्ठियाँ आयोजित की और गांव गांव में लांच डांग कमेटी का गठन


15 मार्च 1974 को जोशीमठ में रेणी के जंगल की नीलामी के खिलाफ विशाल जन आक्रोश रैली


24 मार्च 1974 को दशोली ग्राम स्वराज मंडल की अगुवाई पी जी कालेज गोपेश्वर के छात्रों ने चिपको आंदोलन के समर्थन में विशाल प्रदर्शन


26 मार्च 1974 को रैनी के जंगल में कंपनी के मजदूरों से प्रत्यक्ष टकराव। गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने पेडों से चिपक कर उन्हें कटने से बचाया।


09 मई 1974 को डॉ वीरेंद्र कुमार की अध्यक्षता में सरकार द्वारा वनों के अध्ययन के लिए एक कमेटी का गठन।

चिपको आंदोलन में दशोली ग्राम स्वराज्य मण्डल के साथ स्थानीय नेतृत्व एवं आंदोलनकारी।

मण्डल घाटी Mandal Ghati – आलम सिंह बिष्ट्, बचनलाल, विजय दत्त शर्मा, कुर्मानंद डिमरी, बचन सिंह रावत,
रामपुर फाटा Rampur – केदार सिंह रावत, दयानंद, प्रयाग दत्त, प्रताप सिंह, गजाधर सेमवाल,
रैणी Reni – गौरा देवी, गोविंद सिंह, वासवानंद, हयाद सिंह,कुंदन सिंह भोटिया बन्धु, रामकृष्ण रावत समेत इस क्षेत्र की सभी गांवों के सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों की भागीदारी रही।