गोपेश्वर।
नमामि गंगा परियोजना के तहत अलकनन्दा और उसकी सहायक धाराओं में सीधे गंदगी न जाए इसके लिए अलकनन्दा के उपरी जलग्रहण क्षेत्र में बदरीनाथ से नंदप्रयाग तक लगभग ग्यारह मल शोधन प्लांट बने हुए हैं। चमोली में जिस प्लांट के परिसर में करंट के प्रवाहित होने से सोलह जाने गई और दस लोग घायल हुए वह भी इनमें से ही एक है। अकेले चमोली-गोपेश्वर नगरपालिका परिषद के भीतर ही इस तरह के चार नए प्लांट नमामि गंगा कार्यक्रम के तहत करोड़ों रूपए की लागत से स्थापित किए गए हैं। इन प्लांटों का निमार्ण नमामि गंगा योजना के तहत अलग से स्थापित जल निगम की ईकाई द्वारा कराया गया था। जिसे दो वर्ष पूर्व ही जल सप्लाई से जुड़े उत्तराखण्ड जल संस्थान को सौपा गया था। इस प्लांट के संचालन का जिम्मा संभाल रहे उत्तराखण्ड जल संस्थान के अधिशाषी अभियंता संजय श्रीवास्तव ने बताया कि प्लांट दो वर्ष पूर्व सन 2021 में हमें संचालन के लिए मिला था। चमोली की तरह बदरीनाथ से लेकर नन्दप्रयाग तक अलकनंदा और उसकी सहायक जलधाराओं के तट पर हमारे पास इस तरह के ग्यारह प्लांट हैं।
चमोली में जिस सीवरेज टीटमेंट प्लांट में करंट के प्रवाहित होने से सोलह लोगों की जान चली गई और दस लोग घायल हुए हैं वह अलकनन्दा नदी में गंदगी प्रवाहित न हो इसके लिए नमामि गंगा योजना के तहत चार साल पहले बनाया गया था। चमोली गोपेश्वर नगर पालिका परिषद के भीतर इस तरह के चार प्लांट इस योजना के तहत बनाए गए थे तथा एक पुराने प्लांट का रिनोवेशन किया गया। चमोली में यह प्लांट जहां हादसा हुआ केदारनाथ को जोड़ने वाले चमोली-कुण्ड नेशनल हाईवे पर अलकनन्दा के उपर बने पुल से कुछ ही मीटर की दूरी पर दायी ओर बना है। पुल के बायी ओर दो सौ मीटर की दूरी पर एक दूसरा मलशोधन प्लांट स्थित है। जबकि दो प्लांट गोपेश्वर के इलाके में बने है। इन सभी प्लांटों में अलग से बिजली की हाई-बोल्टेज लाईन से बिजली पहुचायी गई है। जिसके लिए हर प्लांट में अलग से ट्रांसफार्मर लगाए गए है।
अधिशाषी अभियंता श्रीवास्तव से जब यह सवाल किया गया कि कुछ मिडिया रिपोर्ट में पहले भी इस प्लांट में बिजली के करंट के प्रवाहित होने की खबर आ रही है तो उन्होंने कहा कि इसकी उन्हें जानकारी नहीं है। जबसे प्लांट उनके पास आया, यह पहला वाकया है। उन्होंने कहा कि दो साल से प्लांट हमारे नियंत्रण में है लेकिन इस तरह की कोई घटना उनके संज्ञान में नहीं आयी। घटना के प्राथमिक कारणों से जुड़े सवाल पर श्रीवास्तव ने बताया कि प्लांट का पूरा एरिया सील कर दिया गया है। हम लोग कुछ देर में वहां सयुक्त निरीक्षण करेंगे। हादसे के कारणों को लेकर जांच जारी है। जांच के बाद ही सहीं स्थिति स्पष्ट हो पायेगी।
हालांकि ये प्लांट दो साल पहले उत्तराखण्ड जल संस्थान की गोपेश्वर डिविजन को हस्तांतरित हो गया था लेकिन इनकी देखरेख और मरम्मत की जिम्मेदारी ठेकेदारों के पास थी। प्लांट के निमार्ण करने वाले ठेकेदार को प्लांट निमार्ण के बाद पांच साल तक देखरेख की जिम्मेदारी भी दी गई थी। बीते दिवस हुए हादसे में जो गणेश लाल सबसे पहले करंट की चपेट में आया था वह ठेकेदार की तरफ से ही प्लांट की देखरेख के लिए तैनात था। सभी प्लांटों में ठेकेदार की ओर से गणेशलाल जैसे कर्मचारी प्लांट की देखरेख के लिए रखे थे।
श्रीवास्तव कहते हैं हमारे पास जो ग्यारह एसटीपी है उनकी देखरेख का जिम्मा दो कंपनियों द्वारा सयुक्त रूप से किया जा रहा है जिसमें पटियाला के जयभूषण मलिक और कांन्फिडेंट इंजिनियरिंग कोयम्बटूर को सयुक्त रूप से देखरेख और मेंटेनेंस का काम मिला है। आगे इस तरह की घटना न हो इसके लिए सुरक्षा आडिट कराया जायेगा। जिसके लिए मुख्यालय से निर्देश मिले है। जो जल्दी ही शुरू हो जायेगा।
इस पूरी घटना ने उत्तराखण्ड में खासतौर पर चमोली जिले में आपदा प्रबंधन पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। एलर्ट मोड पर रखे गए तथाकथित आपदा प्रबधन तंत्र के जिले मुख्यालय के समीप एक सयंत्र में बिजली के करंट के प्रवाहित होने से एक मजदूर के मारे जाने की सूचना और उसके बाद जो एहतियाती कदम उठाए जाने चाहिए थे उसमें जिला प्रशासन की चूक पर सवाल उठाये जा रहे हैं।pहैं कि रात में मलशोधन संयत्र का चौकीदार करंट लगने से मर जाता है। रात भर मृतक के परिजन मृतक के घर न पहुंचने से चिन्तित थे। परिजनों के फोन पर दूसरी एसटीपी से दूसरा चौकीदार दूसरे दिन सुबह खोजबीन के लिए घटनास्थल पर आता है। जिसके बाद गणेशलाल के करंट से मृत्यु की जानकारी होती है। यह सूचना स्थानीय पुलिस,आपदा प्रबंधन और जिला प्रशासन को मिलती है। करंट प्रवाहित होने से जुड़ी इस आपदा पर संबंिधत संयत्र के संचालनकर्ता विभाग, बिजली विभाग और आपदा प्रबंधन तंत्र को सामान्य आपदा प्रबंधन की एसओपी के तहत सक्रिय हो जाना चाहिए था और पहली घटना की सूचना मिलते ही बिजली विभाग, जल संस्थान और आपदा प्रबंधन एहतियाती कार्यवाहीं कर चुके होते तो चमोली की एसटीपी में सोलह लोगों की हृदय विदारक मौत को टाला जा सकता था।
इस घटना के बाद बहुत सारे सवाल उठ रहे हैं। रात को उस पेज की बिजली जले जाना? और फिर इस बड़ी घटना के समय अचानक बिजली आ जाना? जिनकी सच्चाई आगे होने वाली जांचों से ही सामने आ पायेगी लेकिन एक बाद यह खटक रही है कि बर्षात के एलर्ट मोड पर होने के बाद भी करंट की पहली घटना के बाद आपदा प्रबंधन के तहत बिजली के करंट से जुड़ी आपदा के दौरान एहतियात बरती जानी चाहिए थी, उसमें कोई चूक हुई? वह क्यों नहीं बरती गई? क्या इस तरह के संकट के लिए कोई एसओपी नहीं है? यदि एसओपी है तो उसे लागू करने में कहां कमी रही? इसके लिए आपदा प्रबधंन तंत्र की क्या जिम्मेदारी थी? यह निश्चित होनी चाहिए।
एसटीपी के चौकीदार की करंट से मृत्यु की घटना की सूचना के दो घण्टे बीत जाने के बाद भी संबंधित विभागों में समन्वय न होना। करंट जैसी आपदा के लिए सामान्य एसओपी का पालन करने में चूक की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए। जिससे भविष्य में फिर से ऐसे हादसे न हो।