Wednesday, March 19, 2025
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तुलसी जयंती(जन्म सं. 1554 – सं 1680 )गोस्वामी तुलसी दास की बदरीनाथ यात्रा

Badrinath Yatra of Goswami Tulsi Das

                   विनय सेमवाल               

प्रति वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यानी 2023 में 23 अगस्त बुधवार को महाकवि की 536 वीं जयंती मनाई गई। तुलसी दास जी के जीवनी कारों माता प्रसाद,श्याम सुंदर दास, पीतांबर दत्त बर्थवाल और स्वयं तुलसी दास के शिष्य वेणी माधव के अनुसार तुलसी दास ने श्री बदरी नाथ की भी यात्रा की थी। जिसकी पुष्टि विनय पत्रिका में उनके द्वारा रचित श्री बद्रीनाथ जी की स्तुति से भी होती है।
वेणी माधव के अनुसार तुलसीदास संवद् 1589 (29मई 1532) के अषाड़ माह में पत्नी की उलाहना पर गृह त्याग कर सन्यासी हो गये थे। सन्यास ग्रहण करने पर इन्होंने सर्वप्रथम तीर्थो की यात्रा की। तीर्थ यात्रा के क्रम में इन्होंने सर्वप्रथम अयोध्या में चतुर्मास बिताया।
अयोध्या में चतुर्मास बिताकर यहाँ से क्रमशःजगनाथ पुरी,रामेश्वरम, द्वारावती की यात्रा करने के पश्चाद इन्होंने बदरिकाश्रम की यात्रा की। वेणीमाधव के अनुसार बदरीधाम में इनको वेदव्यास जी ने दर्शन दिये। वेदव्यास की प्रेरणा से इन्होंने कैलाश मानसरोवर की यात्रा की। कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान ही इन्होंने रूपांचल और नीलांचल पर्वतों के भी दर्शन किये जहाँ यात्रा मार्ग में इन्हें एक स्थान पर काकभुषण्डी जी के भी दर्शन हुए। मान सरोवर के दर्शन से तुलसीदास इतने अभीभूत हुए कि राम चरित मानस की तुलना इन्होंने इस दिव्य सरोवर से की। इस प्रकार इनकी चारों धामों की यह संपूर्ण यात्रा 14वर्ष 10माह और 17 दिन में पूरी हुई थी।
विनय पत्रिका जिसमें तुलसी दास द्वारा राम परिवार के साथ ही हनुमान आदि देवताओं की स्तुति कर उनसे अपने आराध्य श्री राम तक अपनी विनती पहुंचाने की प्रार्थना की गई है, में ही इनके द्वारा श्री बदरीनाथ जी की भी स्तुति की गई है। बदरीनाथ जी की स्तुति करते हुए तुलसी दास यात्रा मार्ग की विकट परस्थितियों और मार्ग में पड़ने वाले दुर्गम पहाड़ों(मनभंग, चितभंग,छुरधार,खडगधारा)की तुलना व्यक्ति के दोषों जैसे काम, क्रोध,लोभ,मद से करते हुए हुए कहते है कि, हे प्रभु! वो ही व्यक्ति आपके दर्शन पा सकता है जो इन सब पर विजय प्राप्त कर लेता है।


तुलसी कृत बदरीनाथ स्तुति
नौमि नारायानं, नरं करुनानयनं, ध्यान परयानं, ज्ञानं मूलं।
अखिल संसार-उपकार कारन, सदय हृदय, तपनिरत, प्रनतानुकुलं।। १।।
स्याम तव तामरस दाम द्युति वपुष छवि कोटि मदनार्क अगनित प्रकासं।
तरुन रमनीय राजीव लोचन ललित, वदन राकेस, कर- निकर हासं।। २।।
सकल सौंदर्य निधि विपुल गुनधाम, विधि वेद बुध संभु सेवित अमानं।
अरुन पदकंज, मकरंद मंदाकिनी, मधुप मुनिवृंद कुर्वंती पानं।। ३।।
सक्र प्रेरित घोर मदन मद भंगकृतक्रोधगत, वोधरत, ब्रह्मचारी।
मारकंडेय मुनिवर्यहित कौतुकी, बिनहि कल्पांत प्रभु प्रलयकारी।। ४।।
पुन्य बन सैलसरि बदरिकाश्रम, सदा सीन पद्मासनं, एक रूपं।
सिद्ध योगींद्र वृंदारकानंद प्रद, भद्रदायक दरस अति अनूपं।। ५।।
मान मनभंग, चितभंग मद क्रोध ,लोभादि पर्वत दुर्ग भुवन भर्ता।
द्वेष मत्सर राग प्रवल प्रत्यूह प्रति, भूरि निर्दय, क्रूर कर्म कर्ता।। ६।।
विकटतर वक्र छुरधार प्रमदा, तीव्र दर्प, कंदर्प खडगधारा।
धीर गंभीर मन पीर कारक, तत्र के वराका वय विगत सारा।। ७।।
परम दुर्घट पंथ, खल असंगत साथ नाथ नहिं हाथ वर विरति यष्टी।
दर्सनारत दास, त्रसित माया पास त्राहि हरि त्राहि हरि, दास कष्टी।। ८।।
दास तुलसी दीन धम संबल हीन। स्रमित अति खेद,मति मोह नासी।
देहि अवलंब न विलंब अंभोज कर, चक्रधर तेजबल सर्मरासी।। ९।।
(विनय पत्रिका)

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