डॉ. ओ.पी. जोशी
वर्तमान में देश में कई चर्चित मुद्दे हैं जिनमें टमाटर की बढ़ी कीमत भी एक प्रमुख है।
बढी हुई कीमतों से यह हमारे भोजन की थाली से तो दूर हुआ ही है, परंतु इसकी लूट की भी
कई घटनाएं हुईं हैं। प्रमुख सब्जी के रूप में प्रचलित टमाटर की खोज 15 वीं सदी में हुई थी।
एक मान्यता के अनुसार टमाटर 700 ईसा पूर्व भी मौजूद था। मेक्सिको के आदिवासी अपनी
भाषा में इसे ‘टोमेटो’ कहते थे। आदिवासियों का शब्द ‘टोमेटो’ अंग्रेजी में ऐसे ही स्वीकार कर
लिया गया।
दक्षिणी अमेरिका के पेरू में पहली बार टमाटर की खेती की गयी थी। टमाटर की खोज
के समय यह स्पष्ट नहीं था कि यह विषैला है या खाने योग्य। यूरोप में टमाटर 15 वीं सदी में
ही पहुंच गया था, परंतु वहां लोग इसे 200 वर्षो तक खाने से डरते रहे एवं इसे ‘पाइजन-
एपल’ कहा गया। इसका कारण यह था कि कई लोग टमाटर खाकर मर जाते थे। बाद में
अध्ययन करने पर पाया गया कि मौत का कारण टमाटर नहीं, अपितु सीसे (लेड) की परत
वाली प्लेट थी जिसमें रखकर टमाटर खाये जाते थे। प्लेट का सीसा टमाटर के साथ शरीर में
जाकर मौत का कारण बनता था।
कई चिकित्सक भी 18 वीं सदी तक इसे कैंसर-जन्य एवं ‘ऐपीडी साइट’ का कारण मानते
रहे। बाद में हुए कुछ अध्ययनों से पता चला कि इसका फल तो खाने योग्य है, परंतु इसकी
पत्तियां एवं तना विषैला हो सकते हैं। फल को खाने योग्य माने जाने के बाद इसकी लोकप्रियता
काफी बढी। इटली एवं स्पेन के लोगों ने इसकी खेती शुरू की एवं इसका नाम ‘गोल्डन-
एपल’ रखा गया। फ्रांस में टमाटर को ‘लव-एपल’ कहा गया।
26 सितम्बर 1820 को सेलम के कर्नल राबर्ट जॉनसन द्वारा दो-ढाई हजार लोगों के
सामने टोकनी भर टमाटर खाने एवं कुछ नहीं होने पर अमेरिकी लोगों ने इसे फल व सब्जी के
रूप में मान्य किया। अमेरिका के ही एक व्यापारी ने 1893 में यह दावा किया कि टमाटर एक
फल है इसलिए इस पर सब्जी-कर नहीं लिया जाए। वहां के उच्च न्यायालय ने इस दावे पर
निर्णय दिया कि टमाटर ज्यादातर सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है, अतः यह कर योग्य
है। वर्तमान में टमाटर आलू एवं प्याज के समान ही लोकप्रिय है एवं विश्व की 10 लोकप्रिय
सब्जियों में 06 वें स्थान पर है।
हमारे देश में यह 16 वीं सदी के प्रारंभ में पुर्तगालियों द्वारा लाया गया था। उस समय
लोग इसे ‘विलायती बैंगन’ कहते थे। वर्तमान में इसकी खेती ज्यादातर राज्यों में की जाती
है, उनमें प्रमुख हैं-महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश एवं कर्नाटक। हमारे देश के अलावा
चीन, तुर्की, ईरान, स्पेन एवं ब्राजील में भी यह काफी उगाया जाता है। इसकी बढती लोकप्रियता
के कारण कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी कई किस्में तैयार की हैं। इन किस्मों में आकार, स्वाद एवं
रंग में काफी भिन्नता है।
छोटी चेरी तथा ग्रेप किस्मों के टमाटर छोटे होने के कारण पूरे खाये जाते हैं। ‘भारतीय
बागवानी अनुसंधान संस्था’ के वैज्ञानिकों ने ऐसी किस्म तैयार की है जिसके एक पौधे पर 19-
20 किलो टमाटर लगते हैं। कर्नाटक में कुछ वर्षों पूर्व इसकी खेती प्रारंभ की गयी थी। ‘उत्तराखंड
राज्य जैव-विविधता परिषद’ के वैज्ञानिक इसकी एक झाडी समान विदेशी प्रजाति ‘टमरै-लो’ को
भी उगाने का प्रयास कर रहे हैं।
वैज्ञानिक आधार पर टमाटर एक प्रकार का सरस फल है, परंतु कई अन्य फलों की तरह
इसमें मिठास नहीं होती है। वनस्पति विज्ञान में इस शाकीय पौधे को ‘लाइकोपर्सिकम
एस्कुलेंटम’ कहते हैं जो ‘सोलोनेसी कुल’ का सदस्य है। यह विटामिन ए व सी के साथ
पोटेशियम, कैल्शियम तथा फास्फोरस का भी अच्छा स्त्रोत है। फल को लाल रंग देने वाला
रसायन ‘लायकोपीन’ कैंसर तथा हदय रोग की रोकथाम में भी कारगर बताया गया है। पके फलों
से इस रसायन को हमारा शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है। इसके अन्य औषधीय गुणों
को जानने के लिए अनुसंधान किये जा रहे हैं। स्पेन के ब्यूनाल में एक-दूसरे पर टमाटर फेंकने
और उसके रस में भीगने का एक वार्षिक त्यौहार ‘ला-टामेटिया’ मनाया जाता है। इसे मनाने हेतु
लगभग एक लाख किलो टमाटर का उपयोग किया जाता है। (सप्रेस)
डॉ. ओ.पी. जोशी स्वतंत्र लेखक हैं तथा पर्यावरण के मुद्दों पर लिखते हैं।