नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तेलंगाना के येल्धी हरिप्रसाद गारू द्वारा भेजे गए उपहार से मन की बात शुरू करते हुए कहा कि आज के कार्यक्रम की शुरुआत मैं एक अनूठे उपहार की चर्चा के साथ करना चाहता हूँ। तेलंगाना के राजन्ना सिर्सिल्ला जिले में एक बुनकर भाई हैं – येल्धी हरिप्रसाद गारू। उन्होंने मुझे अपने हाथों से G-20 का यह logo बुन करके भेजा है। ये शानदार उपहार देखकर तो मैं हैरान ही रह गया। हरिप्रसाद जी को अपनी कला में इतनी महारथ हासिल है कि वो सबका ध्यान आकर्षित कर लेते हैं। हरिप्रसाद जी ने हाथ से बुने G-20 के इस Logo के साथ ही मुझे एक चिट्ठी भी भेजी है। इसमें उन्होंने लिखा है कि अगले साल G-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करना भारत के लिए बड़े ही गौरव की बात है। देश की इसी उपलब्धि की खुशी में उन्होंने G-20 का यह Logo अपने हाथों से तैयार किया है। बुनाई की यह बेहतरीन प्रतिभा उन्हें अपने पिता से विरासत में मिली है और आज वे पूरे Passion के साथ इसमें जुटे हुए हैं।
उन्होंने कहा,कुछ दिन पहले ही मुझे G-20 Logo और भारत की Presidency की website को launch करने का सौभाग्य मिला था। इस Logo का चुनाव एक Public contest के जरिए हुआ था। जब मुझे हरिप्रसाद गारू द्वारा भेजा गया ये उपहार मिला, तो मेरे मन में एक और विचार उठा। तेलंगाना के किसी जिले में बैठा व्यक्ति भी G-20 जैसी summit से खुद को कितना connect महसूस कर सकता है, ये देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। आज हरिप्रसाद गारू जैसे अनेकों लोगों ने मुझे चिट्ठी भेजकर ये लिखा है कि देश को इतने बड़े summit की मेजबानी मिलने से उनका सीना चौड़ा हो गया है। मैं आपसे पुणे के रहने वाले सुब्बा राव चिल्लारा जी और कोलकाता के तुषार जगमोहन उनके संदेशे का भी जिक्र करूँगा। इन्होंने G-20 को लेकर भारत के Pro-active efforts की बहुत सराहना की है।
उन्होंने कहा, 18 नवंबर को पूरे देश ने Space Sector में एक नया इतिहास बनते देखा। इस दिन भारत ने अपने पहले ऐसे Rocket को अंतरिक्ष में भेजा, जिसे भारत के Private Sector ने Design और तैयार किया था। इस Rocket का नाम है – ‘विक्रम–एस’| श्रीहरिकोटा से स्वदेशी Space Start-up के इस पहले रॉकेट ने जैसे ही ऐतिहासिक उड़ान भरी, हर भारतीय का सिर गर्व से ऊँचा हो गया। भारत space के sector में अपनी सफलता, अपने पड़ोसी देशों से भी साझा कर रहा है। कल ही भारत ने एक satellite launch की, जिसे भारत और भूटान ने मिलकर develop किया है। ये satellite बहुत ही अच्छे resolution की तस्वीरें भेजेगी जिससे भूटान को अपने प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में मदद मिलेगी। इस satellite की launching, भारत-भूटान के मजबूत सबंधों का प्रतिबिंब है।
उन्होंने कहा,आपने गौर किया होगा पिछले कुछ ‘मन की बात’ में हमने Space, Tech, Innovation पर खूब बात की है। इसकी दो खास वजह है, एक तो यह हमारे युवा इस क्षेत्र में बहुत ही शानदार काम कर रहें हैं। They are thinking Big and Achieving Big। अब वे छोटी-छोटी उपलब्धियों से संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। दूसरी यह कि Innovation और value creation के इस रोमांचक सफर में वे अपने बाकी युवा साथियों और Start-ups को भी Encourage कर रहें हैं।
उन्होंने कहा,जब हम Technology से जुड़े Innovations की बात कर रहें हैं, तो Drones को कैसे भूल सकते हैं? Drone के क्षेत्र में भी भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। कुछ दिनों पहले हमने देखा कि कैसे हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में Drones के जरिए सेब Transport किये गए। किन्नौर, हिमाचल का दूर-सुदूर जिला है और वहां इस मौसम में भारी बर्फ रहा करती है। इतनी बर्फ़बारी में, किन्नौर का हफ़्तों तक, राज्य के बाकी हिस्से से संपर्क बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे में वहां से सेब का Transportation भी उतना ही कठिन होता है। अब Drone Technology से हिमाचल के स्वादिष्ट किन्नौरी सेब लोगों तक और जल्दी पहुँचने लगेंगे। इससे हमारे किसान भाई-बहनों का खर्च कम होगा – सेब समय पर मंडी पहुँच पायेगा, सेब की बर्बादी कम होगी।
उन्होंने Konstantinos Kalaitzis’ के गीत की क्लिप्स सुनाई और कहा आप सभी ने इस गीत को कभी-न-कभी जरुर सुना होगा। आखिर यह बापू का पसंदीदा गीत जो है, लेकिन, अगर मैं ये कहूं कि इसे सुरों में पिरोने वाले गायक Greece के हैं, तो आप हैरान जरुर हो जाएंगे! और ये बात आपको गर्व से भी भर देगी। इस गीत को गाने वाले Greece के गायक हैं – ‘ उन्होंने इसे गांधीजी के 150वें जन्म-जयंती समारोह के दौरान गया था। लेकिन आज मैं उनकी चर्चा किसी और वजह से कर रहा हूँ। उनके मन में India और Indian Music को लेकर गजब का Passion है। भारत से उन्हें इतना लगाव है, पिछले 42 (बयालीस) वर्षों में वे लगभग हर वर्ष भारत आए हैं। उन्होंने भारतीय संगीत के Origin, अलग-अलग Indian Musical systems, विविध प्रकार के राग, ताल और रास के साथ ही विभिन्न घरानों के बारे में भी study की है। उन्होंने, भारतीय संगीत की कई महान विभूतियों के योगदान का अध्ययन किया है, भारत के Classical dances के अलग-अलग पहलुओं को भी उन्होंने करीब से समझा है। भारत से जुड़े अपने इन तमाम अनुभवों को अब उन्होंने एक पुस्तक में बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है। Indian Music नाम की उनकी book में लगभग 760 तस्वीरें हैं। इनमें से अधिकांश तस्वीरें उन्होंने खुद ही खींची है। दूसरे देशों में भारतीय संस्कृति को लेकर ऐसा उत्साह और आकर्षण वाकई आनंद से भर देने वाला है।
उन्होंने संगीत के क्षेत्र में देश की उपलब्धियों पर चर्चा करते हुए कह, कुछ सप्ताह पहले एक और खबर आई थी जो हमें गर्व से भरने वाली है। आपको जानकर अच्छा लगेगा कि बीते 8 वर्षों में भारत से Musical instruments का Export साढ़े तीन गुना बढ़ गया है। Electrical Musical Instruments की बात करें तो इनका Export 60 गुना बढ़ा है। इससे पता चलता है कि भारतीय संस्कृति और संगीत का craze दुनियाभर में बढ़ रहा है। Indian Musical Instruments के सबसे बड़े खरीदार USA, Germany, France, Japan और UK जैसे विकसित देश हैं। हम सभी के लिए सौभाग्य की बात है कि हमारे देश में Music, Dance और Art की इतनी समृद्ध विरासत है।
उन्होंने कहा महान मनीषी कवि भर्तृहरि को हम सब उनके द्वारा रचित ‘नीति शतक’ के लिए जानते हैं। एक श्लोक में वे कहते हैं कि कला, संगीत और साहित्य से हमारा लगाव ही मानवता की असली पहचान है। वास्तव में, हमारी संस्कृति इसे Humanity से भी ऊपर Divinity तक ले जाती है। वेदों में सामवेद को तो हमारे विविध संगीतों का स्त्रोत कहा गया है। माँ सरस्वती की वीणा हो, भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी हो, या फिर भोलेनाथ का डमरू, हमारे देवी-देवता भी संगीत से अलग नहीं है। हम भारतीय, हर चीज़ में संगीत तलाश ही लेते हैं। चाहे वह नदी की कलकल हो, बारिश की बूंदें हों, पक्षियों का कलरव हो या फिर हवा का गूँजता स्वर, हमारी सभ्यता में संगीत हर तरफ समाया हुआ है। यह संगीत न सिर्फ शरीर को सुकून देता है, बल्कि, मन को भी आनंदित करता है। संगीत हमारे समाज को भी जोड़ता है। यदि भांगड़ा और लावणी में जोश और आनन्द का भाव है, तो रविन्द्र संगीत, हमारी आत्मा को आह्लादित कर देता है। देशभर के आदिवासियों की अलग-अलग तरह की संगीत परम्पराएं हैं। ये हमें आपस में मिलजुल कर और प्रकृति के साथ रहने की प्रेरणा देती है।
संगीत की हमारी विधाओं ने, न केवल हमारी संस्कृति को समृद्ध किया है, बल्कि दुनियाभर के संगीत पर अपनी अमिट छाप भी छोड़ी है। भारतीय संगीत की ख्याति विश्व के कोने-कोने में फ़ैल चुकी है। गुयाना की एक क्लिप सुनाई और कहा कि ये आवाज भी आप तक भारत से हजारों मील दूर बसे South American देश Guyana से आई है। 19वीं और 20वीं सदी में बड़ी संख्या में हमारे यहाँ से लोग Guyana गए थे। वे यहाँ से भारत की कई परम्पराएं भी अपने साथ ले गए थे। उदाहरण के तौर पर, जैसे हम भारत में होली मनाते हैं, Guyana में भी होली का रंग सिर चढ़कर बोलता है। जहाँ होली के रंग होते हैं, वहाँ फगवा, यानि, फगुआ का संगीत भी होता है। Guyana के फगवा में वहाँ भगवान राम और भगवान कृष्ण से जुड़े विवाह के गीत गाने की एक विशेष परंपरा है। इन गीतों को चौताल कहा जाता है। इन्हें उसी प्रकार की धुन और High Pitch पर गया जाता है, जैसा हमारे यहाँ होता है। इतना ही नहीं, Guyana में चौताल Competition भी होता है। इसी तरह बहुत सारे भारतीय, विशेषरूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग Fiji भी गए थे। वे पारंपरिक भजन–कीर्तन गाते थे, जिसमें मुख्य रूप से रामचरितमानस के दोहे होते थे। उन्होंने Fiji में भी भजन-कीर्तन से जुड़ी कई मंडलियाँ बना डालीं। Fiji में रामायण मंडली के नाम से आज भी दो हज़ार से ज्यादा भजन-कीर्तन मंडलियाँ हैं। इन्हें आज हर गाँव-मोहल्ले में देखा जा सकता है। मैंने तो यहाँ केवल कुछ ही उदारहण दिए हैं। अगर आप पूरी दुनिया में देखेंगे तो ये भारतीय संगीत को चाहने वालों की ये list काफी लम्बी है।
हम सब, हमेशा इस बात पर गर्व करते हैं, कि हमारा देश दुनिया में सबसे प्राचीन परम्पराओं का घर है। इसलिए, ये हमारी जिम्मेदारी भी है कि, हम, अपनी परम्पराओं और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करें, उसका संवर्धन भी करें और हो सके उतना आगे भी बढ़ाएँ। ऐसा ही एक सराहनीय प्रयास हमारे पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड के कुछ साथी कर रहे हैं। मुझे ये प्रयास काफी अच्छा लगा, तो मैंने सोचा इसे ‘मन की बात’ के श्रोताओं के साथ भी share करूँ।
नागालैंड में नागा समाज की जीवनशैली, उनकी कला- संस्कृति और संगीत, ये हर किसी को आकर्षित करती है। ये हमारे देश की गौरवशाली विरासत का अहम हिस्सा है। नागालैंड के लोगों का जीवन और उनके skills sustainable life style के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन परम्पराओं और skills को बचाकर अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए वहाँ के लोगों ने एक संस्था बनाई है, जिसका नाम है – ‘लिडि-क्रो-यू’ नागा संस्कृति के जो खूबसूरत आयाम धीरे धीरे खोने लगे थे, ‘लिडि-क्रो-यू’ संस्था ने उन्हें फिर से पुनर्जीवित करने का काम किया है। उदाहरण के तौर पर, नागा लोक-संगीत अपने आप में एक बहुत समृद्ध विधा है। इस संस्था ने नागा संगीत की Albums launch करने का काम शुरू किया है। अब तक ऐसी तीन albums launch की जा चुकी हैं। ये लोग लोक-संगीत, लोक-नृत्य से जुडी workshops भी आयोजित करते हैं। युवाओं को इन सब चीजों के लिए training भी दी जाती है। यही नहीं, नागालैंड की पारंपरिक शैली में कपड़े बनाने, सिलाई-बुनाई जैसे जो काम, उनकी भी training युवाओं को दी जाती है। पूर्वोत्तर में bamboo से भी कितने ही तरह के Products बनाए जाते हैं। नई पीढ़ी के युवाओं को bamboo products बनाने का भी सिखाया जाता है। इससे इन युवाओं का अपनी संस्कृति से जुड़ाव तो होता ही है, साथ ही उनके लिए रोजगार के नए-नए अवसर भी पैदा होते हैं। नागा लोक-संस्कृति के बारे में ज्यादा से ज्यादा लोग जानें, इसके लिए भी लिडि-क्रो-यू के लोग प्रयास करते हैं।
आपके क्षेत्र में भी ऐसी सांस्कृतिक विधाएँ और परम्पराएँ होंगी। आप भी अपने-अपने क्षेत्र में इस तरह के प्रयास कर सकते हैं। अगर आपकी जानकारी में कहीं ऐसा कोई अनूठा प्रयास हो रहा है, तो आप उसकी जानकारी मेरे साथ भी जरूर साझा करिए।
शिक्षा को लेकर हरदोई के जतिन ललित सिंह के कार्य को अनुकरणीय बताते हुए कहा कोई अगर विद्या का दान कर रहा है, तो वो समाज हित में सबसे बड़ा काम कर रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में जलाया गया एक छोटा सा दीपक भी पूरे समाज को रोशन कर सकता है। मुझे यह देखकर बहुत खुशी होती है कि आज देश-भर में ऐसे कई प्रयास किए जा रहे है। यूपी की राजधानी लखनऊ से 70-80 किलोमीटर दूर हरदोई का एक गांव है बांसा। मुझे इस गांव के जतिन ललित सिंह जी के बारे में जानकारी मिली है, जो शिक्षा की अलख जगाने में जुटे हैं। जतिन जी ने दो साल पहले यहां ‘Community Library and Resource Centre’ शुरू किया था। उनके इस centre में हिंदी और अंग्रेजी साहित्य, कंप्यूटर, लॉ और कई सरकारी परीक्षाओं की तैयारियों से जुड़ी 3000 से अधिक किताबें मौजूद हैं। इस Library में बच्चों की पसंद का भी पूरा ख्याल रखा गया है। यहां मौजूद comics की किताबें हों या फिर Educational Toys, बच्चों को खूब भा रहे हैं। छोटे बच्चे खेल-खेल में यहां नई-नई चीजें सीखने आते हैं। पढ़ाई Offline हो या फिर Online, करीब 40 Volunteers इस Centre पर Students को Guide करने में जुटे रहते हैं। हर रोज गांव के तकरीबन 80 विद्यार्थी इस Library में पढ़ने आते हैं।
झारखंड के संजय कश्यप जी भी गरीब बच्चों के सपनों को नई उड़ाने दे रहे हैं। अपने विद्यार्थी जीवन में संजय जी को अच्छी पुस्तकों की कमी का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उन्होंने ठान लिया कि किताबों की कमी से वे अपने क्षेत्र के बच्चों का भविष्य अंधकारमय नहीं होने देंगे। अपने इसी मिशन की वजह से आज वो झारखंड के कई जिलों में बच्चों के लिए ‘Library Man’ बन गए हैं। संजय जी ने जब अपनी नौकरी की शुरुआत की थी, उन्होंने पहला पुस्तकालय अपने पैतृक स्थान पर बनवाया था। नौकरी के दौरान उनका जहां भी Transfer होता था, वहां वे ग़रीब और आदिवासी बच्चों की पढ़ाई के लिए Library खोलने के mission में जुट जाते हैं। ऐसा करते हुए उन्होंने झारखंड के कई जिलों में बच्चों के लिए Library खोल दी है। Library खोलने का उनका यह mission आज एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले रहा है। संजय जी हो या जतिन जी ऐसे अनेक प्रयासों के लिए मैं उनकी विशेष सराहना करता हूं।
Medical science की दुनिया ने research और innovation के साथ ही अत्याधुनिक technology और उपकरणों के सहारे काफी प्रगति की है, लेकिन कुछ बीमारियाँ, आज भी हमारे लिए, बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है। ऐसी ही एक बीमारी है – Muscular Dystrophy ! यह मुख्य रूप से एक ऐसी अनुवांशिक बीमारी है जो किसी भी उम्र में हो सकती है इसमें शरीर की मांसपेशियाँ कमजोर होने लगती हैं। रोगी के लिए रोजमर्रा के अपने छोटे-छोटे कामकाज करना भी मुश्किल हो जाता है ऐसे मरीजों के उपचार और देखभाल के लिए बड़े सेवा-भाव की जरूरत होती है। हमारे यहां हिमाचल प्रदेश में सोलन में एक ऐसा centre है, जो Muscular Dystrophy के मरीजों के लिए उम्मीद की नई किरण बना है। इस centre का नाम है – ‘मानव मंदिर’, इसे Indian Association Of Muscular Dystrophy द्वारा संचालित किया जा रहा है। मानव मंदिर अपने नाम के अनुरूप ही मानव सेवा की अद्भुत मिसाल है। यहां मरीजों के लिए OPD और admission की सेवाएं तीन-चार साल पहले शुरू हुई थी। मानव मंदिर में करीब 50 मरीजों के लिए beds की सुविधा भी है। Physiotherapy, Electrotherapy, और Hydrotherapy के साथ-साथ योग-प्राणायाम की मदद से भी यहां रोग का उपचार किया जाता है।
हर तरह की hi-tech सुविधाओं के जरिए इस केंद्र में रोगियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का भी प्रयास होता है। Muscular Dystrophy से जुड़ी एक चुनौती इसके बारे में जागरूकता का अभाव भी है। इसीलिए, यह केंद्र हिमाचल प्रदेश ही नहीं, देशभर में मरीजों के लिए जागरूकता शिविर भी आयोजित करता है। सबसे ज्यादा हौसला देने वाली बात यह है कि इस संस्था का प्रबंधन मुख्य रूप से इस बीमारी से पीड़ित लोग ही कर रहे हैं, जैसे सामाजिक कार्यकर्ता, उर्मिला बाल्दी जी, Indian Association Of Muscular Dystrophy की अध्यक्ष बहन संजना गोयल जी, और इस Association के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले श्रीमान् विपुल गोयल जी, इस संस्थान के लिए बहुत अहम् भूमिका निभा रहे हैं। मानव मंदिर को Hospital और Research centre के तौर पर विकसित करने की कोशिशें भी जारी हैं। इससे यहां मरीजों को और बेहतर इलाज मिल सकेगा। मैं इस दिशा में प्रयासरत सभी लोगों की हृदय से सराहना करता हूँ, साथ ही Muscular Dystrophy का सामना कर रहे सभी लोगों की बेहतरी की कामना करता हूँ।