गोपेश्वर
चमोली जिले का एक गांव ऐसा भी है जहां जंगल में आग लगने ही नहीं दी जाती, यदि असावधानी से जंगल के किसी कोने पर आग लग भी गई तो उसे बुझाने के लिए लोग दिन-रात एक कर देते हैं।
यह गांव है दशोली विकास खण्ड को ठेली। मेड-ठेली का यह उप गांव अर्थात हेलमेट विलेज है।
शनिवार को वनाग्नि की रोकथाम के लिए निकली जनजागरण और अध्ययन यात्रा की गांव में हुई विचार गोष्ठी में गांव की महिलाओं ने जंगल को दवाग्नि से बचाने के अपने अनुभव साझा किए।
गांव की पूर्व प्रधान श्रीमती माहेश्वरी देवी ने बताया कि पिछले साल जंगल के एक कोने पर आग लगी,खबर लगते ही अपने अन्य कार्य छोड़ कर गांव की सभी महिलाएं अपने काम धंधे छोड़ कर आग बुझाने में जुट गई।घर तभी लौटी जब आग शांत हुई।
बांज के पेड़ इनके खेतों के आसपास हैं लेकिन इनके काश्तकारी के जंगल का बड़ा हिस्सा चीड़ के पेड़ों का है,इन्हीं के आसपास इनकी गौशालाएं और छानियों है। गर्मियों में आग के खतरे की जद में रहती है। माहेश्वरी देवी बताती है उनके गांव के बुजुर्ग भी इस खतरे से वाकिफ थे उन्हीं की सीख से गांव की पीढ़ी दर पीढ़ी जंगल में आग न लगे इसके लिए सतर्क रहती है। किसी वजह से आग लग भी गई तो उसे शांत कर दिया जाता है।
गांव की महिला मंगल दल की अध्यक्षा श्रीमती जमुना देवी की अध्यक्षता में सम्पन्न बैठक में पूर्व अध्यक्ष श्रीमती ने बताया कि तीन साल पहले मई के महीने की बात थी, गांव में बिटिया की शादी हो रही थी,हम लोग मंगल स्नान की तैयारी में जुटे थे, अचानक गांव के उपरी भाग में धूंआ दिखाई दिया। वाद में जंगल में आग की लपटे उठती दिखी। सारी गांव की महिलाएं मंगल स्नान का कार्य छोड़ कर आगे बुझाने चली गई। सुबह लगी आग दोपहर में जाकर शांत हुई और उसके बाद महिलाएं जब घर लौटी तभी ही बिटिया की शादी से जु़ड़े कार्य शुरू हो पाए। गांव की श्रीमती सुभद्रा देवी ने बताया कि ऐसे कई उदाहरण हैं। कई बार बच्चों के मुंडन समारोह में भी आग लगने की वजह से आग बुझाने के बाद ही समारोह शुरू हो पाए।
माहेश्वरी देवी कहती है आग को बुझाते हुए कुछ मौके ऐसे भी आते थे जब हमारी साथी आग से झुलस जाती थी, खासतौर पर मुंह और बालों के झुलसने की घटनाएं आम होती हैं। इसके लिए वह कहती है कि दवाग्नि के सीजन के शुरू होने से पहले ही कुछ प्रयास होने चाहिए। जिसमें आग के खतरे वाले गांव के इच्छुक लोगों को न केवल जागरूक किया जाना चाहिए अपितु उन्हें आग लगने की स्थिति में अपनी सुरक्षा के साथ आग पर काबू पाने की सरल तकनीकी का प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए और इसके लिए जरूरी उपकरण भी ग्रामस्तरीय संगठनों को उपलब्ध कराए जाने चाहिए। बेहतर कार्य करने वाले संगठनों को सामुहिक रुप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
मेढ-ठेली गांव के लोगों खासकर गांव की महिलाओं की दवाग्नि की रोकथाम की यह लग्न वनाग्नि से त्रस्त उत्तराखंड के लिए एक आदर्श सीख है। इनके अनुभव के उपयोग से अन्य इलाकों में भी वनाग्नि की घटनाओं को कम किया जा सकता है।