ग्रामीणों ने की समय पूर्व प्रशिक्षण व वनाग्नि रोधी उपकरण उपलब्ध कराये जाने की मांग
विनय सेमवाल
गोपेश्वर। वनों को दावनल से बचाने के लिए- चिपको के बाद यही पुकार, जंगल न जलने देंगे अबकी बार, के संदेश के साथ निकली, जनजागरण एवं अध्ययन यात्रा का नंदानगर विकास खंड के राजबगठी गाँव मे समापन हो गया। यह यात्रा दशोली विकास खंड के लासी गाँव से शुरू हुई थी।
जन-जागरण यात्रा में यात्री दल ने ग्रामीणों से सीधा संवाद किया, वनाग्नि के कारणों तथा स्थानीय स्तर पर इसके न्यूनीकरण के फौरी तथा दीर्घकालिक उपायों पर बैठकों के माध्यम से विचार-विमर्श की श्रंखला चलायी। इस दौरान वन संवर्धन और संरक्षण पर भी ग्रामस्तर पर चलाएं जा रहे कार्यो पर भी चर्चा हुई।
ग्रामीणों से प्रत्यक्ष संवाद में दशोली विकास खण्ड की ठेली गांव की महिला मंगल दल की अध्यक्षा जमुना देवी ने बताया कि उनका गाँव चारों ओर से चीड़ के वनों से घिरा है। इन इलाकों में जहाँ लगभग हर साल आसपास के इलाकों से आग आती है और उनके जंगल को भी चपेट में ले लेती है।हम हर साल इसके लिए पहले से ही तैयार रहते हैं। हर साल अपने संसाधनों से जंगल जलने नहीं देते हैं।
इस दौरान दवानल से झुलसने व जलने के खतरे पर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार की ओर समय समय पर इसके लिए ग्राम स्तरीय संगठनों के सदस्यों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। छोटे-मोटे जरूरी उपकरण इन संगठनों को मुहैया कराये जाने चाहिए।
इसी गांव की सक्रिय समाजसेवी और पूर्व प्रधान माहेश्वरी देवी ने वनाग्नि की रोकथाम से जुड़े अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि उनके गाँव की महिलाएं अपने जंगलों के प्रति इतनी सजग हैं की आज से दो वर्ष पूर्व गाँव में जब शादी हो रही थी मंगल-स्नान की तैयारी चल रही थी इसी बीच महिलाओं ने जंगल मे धुंआ देखा। सभी महिलाएं शादी में मंगल स्नान की रश्म वहीं पर छोड़ी और सीधे जंगल में आग बुझाने चली गई। जब जंगल की आग शांत हुई तभी वापस लौटी। और आगे बुझने के बाद ही शादी की यह रश्म पूरी हुई।
सरतोली के ग्राम प्रधान विनोद राणा ने कहा कि जंगलों में आग लगाने वाले तत्वो को दंडित किया जाना चाहिए। इसके लिए संबंधित विभागों को कार्यवाही करने में सक्रियता दिखानी चाहिए। सरतोली के सरपंच बिष्ट ने बताया कि नामजद शिकायत करने के बाद भी कार्यवाही नहीं हो पाने से रोकथाम के प्रयास सफल नहीं हो पाते।
धारकोट की सरपंच श्रीमती मनीषा देवी ने जंगल में बढ़ती गाजर घास तथा लेंटाना की झाड़ियों को वनाग्नि का बड़ा कारण बताया। उन्होंने कहा कि वनाग्निकाल शुरू होने से पहले इन खरपतवारों का सफाया किया जाना चाहिए। खासतौर पर जंगल की सीमाओं और आने जाने के रास्ते इनसे मुक्त होने चाहिए जिससे आग लगने की घटनाएं कम की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि समय से सभी विभाग ग्रामीणों के साथ समन्वय करेंगे तो वनाग्नि काफी हद तक कम की जा सकती है। बैरासकुण्ड में आयोजित गोष्ठी में महिला मंगल दल अध्यक्षा सुशील देवी ने बताया की उनके गाँव में महिलाओं द्वारा पाँच हे.में बाँज का जंगल संरक्षित किया गया है। जिसकी सुरक्षा हेतु महिला मंगल दल द्वारा चौकीदारी की जाती हैं। राज बगठी के समाज सेवी कै. रावत ने भी प्रत्यक्ष संवाद के दौरान ग्रामीणों ने समय पूर्व प्रशिक्षण व आग रोधी उपकरण उपलब्ध कराये जाने की मांग की।
जन जागरण एवं अध्यन यात्रा में शामिल ओम प्रकाश भट्ट ने प्रथम चरण की इस यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि ग्रामीणों से प्रत्यक्ष संवाद के दौरान स्थानीय स्तर पर इसके लगने के कारणों के साथ ही इसके निराकरण के फौरी एवं दीर्घकालिक उपायों पर गोष्ठियों के माध्यम से चर्चा परिचर्चा की गयी। जिसमे स्थानीय कारको की बाहुल्यता तथा विभागों व ग्रामीणों के मध्य परस्पर संवाद की कमी पायी गयी। ग्रामीणों को ग्राम स्तर पर गठित वनाग्नि रोधी तथा आपदा प्रबंधन समितियां भी धरातल पर नजर नही आई जो कि किसी भी आपदा में स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन की महत्वपूर्ण कढी है। अतः यदि हमें वनागनि से निपटना है तो ऐसे में जरूरी है कि समय पूर्व ही प्रशिक्षण के साथ ही उन्हे आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराये जाने के साथ ही वन विभाग के साथ ही अन्य विभागों का मजबूत संमन्वय तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए।
इस जन जागरण एवं यात्रा में वन विभाग के साथ ही हेरिटेज ऑफ गढ़वाल हिमालय के प्रदीप फरस्वाण, चं. प्र.भट्ट पर्यावरण एवं विकास केंद्र के संमन्वयक विनय सेमवाल शामिल थे।
इस दौरान आयोजित गोष्ठी कार्यक्रमों में योगेन्द्र सिंह रावत, पूर्व प्रधान धारकोट लकेश तोपाल, सरपंच पलेठी हीरा सिंह,प्रधान मटई प्रभात पुरोहित, बैरासकुंड के उमेश कठेत, देवेंद्र सिंह, सोहन सिंह, शाखम्बरी देवी, राधा देवी, जयकृत सिंह रावत, लोग मौजूद थे।
यात्रा के दौरान यात्रा मार्ग के स्कूली छात्र -छात्राओं से भी संवाद किया गया।