Dr. M S Swaminathan
गोपेश्वर।
हरित क्रांति के जनक और विख्यात कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन के निधन पर चिपको आंदोलन के नेता चंडी प्रसाद भट्ट समेत उत्तराखंड में वन संरक्षण खेतीबाड़ी के विकास से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गहरा दुख व्यक्त किया। भट्ट ने इसे व्यक्तिगत क्षति बताया है।
उन्होंने कहा कि डा स्वामीनाथन जमीन से जुड़े सच्चे विज्ञानी थे। उनके साथ बिताए समय की याद करते हुए भट्ट ने कहा चिपको आंदोलन के दौर से ही स्वामीनाथन जी का स्नेह मिलता रहा। आठवें दशक उनसे मिलने की जो शुरआत हुई वह उनके जीवन के आखिरी तक वैंसी ही बनी रही। अस्वस्थ होने के बाद उनसे मुलाकात का जब भी मौका मिला मिलते समय उनकी उर्जा और गर्मजोशी पहले जैसी ही रहती थी। पूरे स्नेह के साथ मिलते थे, समस्याओं पर अपने विचार रखते थे।
भारत सरकार में कृषि सचिव के रुप में आठवें दशक में उनकी गोपेश्वर की यात्रा की याद करते हुए भट्ट ने कहा कि यात्रा के दौरान मंडल में ग्रामीणों ने वन्यजीव से हो रहे नुकसान के निराकरण की मांग उनसे की थी, उस समय इस पूरे इलाके में उनके सहयोग से फसलों को बचाने के लिए पत्थर की दिवाले लगायी गई थी जिससे फसलों का नुक़सान कम हुआ। आज भी उस दौर की खेती सुरक्षा दीवाल कई गांवों में खड़ी है।
योजना आयोग के सदस्य के रूप में पहाड़ी इलाकों के विकास को दिशा देने में उन्होंने अभूतपूर्व योगदान दिया।
पहाड़ी इलाकों के विकास को लेकर स्वामीनाथन जी का पूरा परिवार समर्पित रहा है।
98 साल की उम्र में स्वामीनाथन जी का गुरुवार को को निधन हो गया है।
डा. स्वामीनाथन को उनके कार्यों के लिए फादर ऑफ ग्रीन रिवॉल्यूशन भी कहा जाता है। वे काफी समय से बीमार चल रहे थे। उनके द्वारा हरित क्रांति की वजह से कई राज्यों में कृषि उत्पादों में इजाफा हुआ था।
डा.स्वामीनाथन को 1987 में प्रथम खाद्य पुरस्कार दिया गया था। वो पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित हो चुके हैं। उन्हें दुनिया भर की सरकारों ने सम्मानित किया था। कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मैगासेसे पुरस्कार भी मिल चुका है।
स्वामीनाथन ने देश में धान की फसल को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में बड़ा योगदान दिया था। इस पहल के चलते पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को काफी मदद मिली थी।
संभाले थे कई प्रमुख पद
स्वामीनाथन अपने कार्यकाल के दौरान कई प्रमुख पदों पर काबिज रहे थे। वो भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का निदेशक (1961-1972), आईसीआर के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव (1972-79), कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव (1979-80) नियुक्त किया गया था।
मनीला में अतंरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक भी रहे।